मक्खन जी को शेरो-शायरी की एबीसी नहीं पता लेकिन एक बार जिद पकड़ ली कि शहर में हो रहा मुशायरा हर हाल में सुनेंगे...बड़ा समझाया कि तुम्हारी सोच का दायरा बड़ा है...ये मुशायरे-वुशायरे उस सोच में फिट नहीं बैठते...लेकिन मक्खन ने सोच लिया तो सोच लिया...नो इफ़, नो बट...ओनली जट..पहुंच गए जी मुशायरा सुनने...मुशायरे में जैसा होता है नामी-गिरामी शायरों के कलाम से पहले लोकल स्वयंभू शायरों को माइक पर मुंह साफ करने का मौका दिया जा रहा था...ऐसे ही एक फन्ने मेरठी ने मोर्चा संभाला और बोलना शुरू किया...कुर्सी पे बैठा एक कुत्ता....पूरे हॉल में खामोशी लेकिन अपने मक्खन जी ने दाद दी...वाह, सुभानअल्ला...आस-प़ड़ोस वालों ने ऐसे देखा जैसे कोई एलियन आसमां से उनके बीच टपक पड़ा हो...उधर फन्ने मेरठी ने अगली लाइन पढ़ी ...कुर्सी पे बैठा कुत्ता, उसके ऊपर एक और कुत्ता...हाल में अब भी खामोशी थी लेकिन मक्खन जी अपनी सीट से खड़े हो चुके थे और कहने लगे...भई वाह, वाह, वाह क्या बात है, बहुत खूब..अब तक आस-पास वालों ने मक्खन जी को हिराकत की नज़रों से देखना शुरू कर दिया था...फन्ने मेरठी आगे शुरू...कुर्सी पे कुत्ता, उसके ऊपर कुत्ता, उसके ऊपर एक और कुत्ता...ये सुनते ही मक्खनजी तो अपनी सीट पर ही खड़े हो गए और उछलते हुए तब तक वाह-वाह करते रहे जब तक साथ वालों ने हाथ खींचकर नीचे नहीं गिरा दिया...फन्ने मेरठी का कलाम जारी था...कुर्सी पे कुत्ता, उस पर कुत्ता, कुत्ते पर कुत्ता, उसके ऊपर एक और कुत्ता...अब तक तो मक्खन जी ने फर्श पर लोट लगाना शुरू कर दिया था...इतनी मस्ती कि मुंह से वाह के शब्द बाहर आने भी मुश्किल हो रहे थे......एक जनाब से आखिर रहा नहीं गया...उन्होंने मक्खन से कड़क अंदाज में कहा... ये किस बात की वाह-वाह लगा रखी है... हैं..मियां ज़रा भी शऊर नहीं है क्या...इतने वाहिआत शेर पर खुद को हलकान कर रखा है...मक्खन ने उसी अंदाज में जवाब दिया...ओए...तू शेर को मार गोली...बस कुत्तों का बैलेंस देख, बैलेंस ,...
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