मेरा एक दोस्त है मक्खन...पिता गैरेज चलाते हैं...अब मक्खन ठहरा मक्खन...रब का बंदा...पढ़ाई मे ढक्कन रहा...कह-कहवा कर नवीं तक तो गाड़ी निकल गई...दसवीं में बोर्ड था तो गाड़ी अटक गई...तीन चार साल झटके खाए...पिता ने भी मान लिया कि मक्खन की गा़ड़ी गैरेज में ही जाकर पार्क होगी...सो अब हमारा मक्खन गैरेज चलाता है...आज तो सिर्फ मक्खन का परिचय दे रहा हूं...उसके किस्से आपको आगे स्लॉग ओवर में सुनने को मिलते रहेंगे...मक्खन की अक्सर बड़ी मासूम सी समस्याएं होती हैं...जैसे कि कोई फॉर्म ओनली कैपिटल में भरना हो तो मक्खन पूछता है... फॉर्म क्या दिल्ली जाकर भरना होगा...मक्खन बेचारा दिल्ली का एसटीडी कोड (011) भी नहीं मिला पाता...क्यों नहीं मिला पाता...मक्खन जी को फोन पर 0 का बटन तो मिल जाता है 11 का बटन कहीं ढूंढे से भी नहीं मिलता...मक्खन को कहीं फैक्स करना हो तो कहता है कि इस पर पोस्टल स्टैम्प लगा दूं...रास्ते में कहीं खोने का रिस्क नहीं रहेगा...ऐसा है हमारा मक्खन...
हिन्दी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और चमत्कार...खुशदीप
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*क्या ऐसा हो सकता है कि दुनिया की किसी भी भाषा की किताब या अखबार आपके सामने
हो और आप उसे हिन्दी में फर्राटे के साथ पढ़ सकें?*
*क्या ऐसा हो सकता है कि आप...
1 सप्ताह पहले
4 टिप्पणियाँ:
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मक्खन कुछ अधिक इंटेलीजेंट है।
अपना नाम सभी को बहुत दूर से भी दिख जाता है. नाम देखा वो भी मख्खन के साथ तो फिसलता चला आया. मैंने सबसे पहले टराई किया ० के साथ ११ कोड मिलाने का, और कामयाब रहा तब जा के समझा बात मेरी नहीं "कौनो मख्खेन्वा " की हो रही है...
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