एक बार ललित शर्मा भाई मॉर्निंग वॉक पर निकले...किसी सिरफिरे ने सड़क पर केले का छिलका फेंक रखा था...ललित भाई को छिलका दिखा नहीं और जा फिसले...पार्क के पास ही एक गधे महाराज घास पर हाथ साफ कर रहे थे...ललित भाई का बैलेंस बना नहीं और वो गधे के पैरों के पास जा गिरे...वहीं एक सुंदर सी मैडम खड़ी थी...मैडम से हंसी रोकी नहीं गई और चुटकी लेते हुए ललित भाई से बोली...क्यों सुबह-सुबह बड़े भाई के पैर छू रहे हो क्या...ललित भाई भी ठहरे ललित भाई...कपड़े झाड़ते हुए उठ कर मैडम से बड़े अदब से बोले...जी भाभी जी...
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एक कंजूस व्यापारी के दादाजी की मौत हो गई...वो अखबार में शोक विज्ञापन देने के लिए गया...उसने विज्ञापन दिया...दादाजी खत्म....अखबार के स्टॉफ ने कहा...इतना छोटा विज्ञापन हम स्वीकार नहीं करते, कम से कम पांच शब्द विज्ञापन में होने चाहिए...कंजूस व्यापारी ने बिना एक मिनट गंवाए कहा...दादाजी खत्म, व्हील चेयर बिकाऊ...
15 टिप्पणियाँ:
हा हा हा……………दोनो शानदार्।
क्या कहने खुशदीप भाई.ललित जी ने भाभी कह कर नहले पे दहला मारा तो कंजूस ने एक एड. में दो का काम संवारा.
हा ...हा...हा
गधा काफ़ी दिलचस्प लग रहा है ।
आज लिंक माफ ।
ha ha ha ....
छक्के पे छक्का!
मज़ेदार पोस्ट !
ललितजी + खुशदीपजी ज़िंदाबाद ! :)
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ha ha ha ha
कंजूस हो तो ऐसा हो, हाजिर जबाब ललित जैसा हो,
hahah LOL hilarious !!
हा हा...मजेदार!!
गुड वन.... नहीं नहीं टू जी
एक के साथ एक फ़्री
भैया के साथ भौजाई फ़्री।
आप गधे कभी आदमी नहीं बना सकते।
चाहे लाख कोशिश कर लो।
वाह बहुत खूब खुशदीप भाई ... आपका जवाब नहीं !
यह तो खूब मजेदार रहा ...
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'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!
हाहाहा.....दादाजी खत्म, व्हील चेयर बिकाऊ...
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